Jitiya Vrat 2023: इस साल कब है जितिया? जानें जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व, पढ़ें पौराणिक कथा
सनातन धर्म की धरोहर में व्रत-त्योहार का महत्व अत्यधिक होता है। यहाँ व्रत का मतलब होता है व्रतदाता के दिल की गहरी इच्छा और आस्था को पूरा करना। इन उपवासों में से कुछ पतियों की दीर्घ आयु की कामना के लिए होते हैं, तो कुछ माताओं की बच्चों की सुख-समृद्धि और लंबी आयु की प्राप्ति के लिए की जाती है। इनमें से एक व्रत है जितिया व्रत, जिसे जीवितपुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से संतान की सुरक्षा और दीर्घायु के लिए माताओं द्वारा मनाया जाता है। इस साल, जीतिया व्रत 6 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
हिंदू पंचांग के अनुसार, जीतिया या जीवितपुत्रिका व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से नवमी तिथि तक मनाया जाता है। इस व्रत को विशेष दिनों पर मनाने की परंपरा है, और इस साल यह व्रत 6 अक्टूबर को शुक्रवार को मनाया जाएगा। व्रत के दौरान, व्यक्तिगत भोजन के सबसे पहले एक दिन पहले से तामसिक आहार जैसे प्याज, लहसुन, और मांसाहार का सेवन नहीं करना होता है। इसके अलावा, व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन भी करना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।
जितिया व्रत का पौराणिक महत्व
जीतिया व्रत की पौराणिक कथा हिन्दू धर्म में गहरे आध्यात्मिक अर्थ से जुड़ी है। इसके अनुसार, महाभारत युद्ध के समय अश्वत्थामा पिता की मौत के समाचार से बेहद दुखी हो गए थे। उन्होंने अपने मन में बदले की भावना लेकर पांडवों के शिविर में आकर गर्भित महिलाओं की ओर बढ़ा दिया। वे मिथ्या तरीके से पांडवों को शिविर में सोते हुए गिनती करके उनकी संतान को नष्ट कर दिया था। इसके बाद, भगवान श्रीकृष्ण ने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा की अजन्मी संतान को जीवित करने का अद्भुत वरदान दिया, जिसे हम जीवितपुत्रिका व्रत के रूप में जानते हैं।
जीवितपुत्रिका व्रत का महत्व यहाँ तक है कि इसका पालन करने से माताएं अपने पुत्रों की रक्षा करती हैं और उनकी दीर्घायु की कामना करती हैं। यह व्रत माताओं की प्रेम और भक्ति को व्यक्त करने का अद्वितीय तरीका है, और इससे परिवार की खुशी और पूर्णता की प्राप्ति के लिए आशीर्वाद मिलता है।
कैसे रखें जीवित्पुत्रिका व्रत?
- सबसे पहले व्रत रखने वाली महिला को सूर्योदय से पहले उठना चाहिए उसके बाद नहा धोकर साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।
- कपडे पहनने के बाद प्रदोष काल में गया के गोबर से पूजा करने वाली जगह को साफ़ करना चाहिए यानी की पूजा के स्थान पर गाय के गोबर से लिपाई करनी चाहिए ताकि वो जगह पवित्र हो सकें।
- उसके बाद पूजा के स्थान पर वहां एक पाकड़ की डाल खड़ी कर दें।
- डाल खड़ी करने के बाद आप शालिवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की कुशनिर्मित मूर्ति जल के पात्र में स्थापित करें।
- मूर्ति स्थापित करने के बाद उन्हें दीप, धूप, अक्षत, रोली और लाल और पीली रूई से सजाएं।
- ऐसा करने के बाद आप उन्हें भोग लगाएं।
- इस व्रत में मिट्टी या गोबर से मादा चील और मादा सियार की प्रतिमा बनाई जाती है तो आप वो भी बनाएं।
- उसके बाद दोनों को लाल सिंदूर अर्पित करें।
- अब पुत्र की प्रगति, लम्बी उम्र, और कुशलता की कामना करें।
- ऐसा करने के बाद आप बाद व्रत की कथा सुनें या पढ़ें और कथा करने के बाद आरती करें।
- जितिया व्रत के पूजन में पेड़ा, दूब, खड़ा चावल, 16 गांठ का धागा, इलाईची, पान, सुपारी और बांस के पत्ते आदि भी चढ़ाए जाते हैं।
- साथ ही जितिया के पूजन में सरसों का तेल और खील भी चढ़ाई जाती है, जिसे बुरी नजर दूर करने के लिए अगले दिन बच्चों के सिर पर लगाया जाता है ऐसा माना जाता है की इससे बच्चों को बुरी नज़र से बचे रहने में मदद मिलती है।
जीवित्पुत्रिका व्रत रखने का क्या फायदा होता है?
- जैसा की आप जानते हैं की यह व्रत पुत्र की लम्बी उम्र की कामना के लिए महिलाएं करती है तो इस व्रत को रखने से आपको आपके पुत्र की लम्बी आयु, उसे जीवन में प्रगति मिलें, उसे मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़े, वो हमेशा स्वस्थ रहें, यह सब मिलने में मदद मिलती है।
- जिन महिलाओं को संतान नहीं होती है या फिर कोई महिला पुत्र प्राप्ति की इच्छा से इस व्रत को रखती है तो इस व्रत को रखने से उनकी इच्छा को पूरी होने में मदद मिलती है।
तो यह है जीवित्पुत्रिका व्रत 2023 कब है, कैसे रखा जाता है, इस व्रत को रखने के कौन- कौन से फायदे मिलते हैं उससे जुडी सम्पूर्ण जानकारी। यदि आप भी यह व्रत रखते हैं तो आप भी इस व्रत को रख सकते हैं।
जितिया व्रत अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग तरीके से रखा जाता है। इसलिए आप अपने क्षेत्र के अनुसार ही जितिया व्रत रख सकते है।